ताजमहल या तेजो महालय - 5


प्रो.पी. एन. ओक. ने जितने भी तथ्य दिए हैं ताजमहल को तेजो महालय बनाने के लीए उनमे से कुछ तो इनके द्वारा बनाई कहानियां हैं और कुछ को उन्होंने इतिहास के सम्भावनाओं से जोड़ रखा है|


प्रो. ओक. ने अपने तथ्यों को सत्य बताने के लिए बादशाहनामा के बारे में भी लिखा है|  
बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था।


यह बात सत्य मानी जा सकती है क्योंकि इतिहास में भी इसका वर्णन मिलता है परन्तु इसमें कहीं भी यह नही लिखा है की वह एक शिव मंदिर था और उसका नाम तेजो महालय था| वैसे भी ये लेन – देन तो चलता ही रहता है इससे फिर वे क्या साबित करना चाहते हैं क्या ये धर्म प्रचारकों के समझ से परे है| और जब इतिहास में ताजमहल के निर्माण की कहानी अंकित है तो फिर क्या कोई एक इमारत खरीद कर उसके जगह दूसरी नही बना सकता और जब इमारत बन जाये तो उसे उसी के नाम से जोड़ा जाता है जिसके कारन वह प्रसिद्ध होता है|


इन्होने पिटर मुंडी के बारे में भी लिखा है और इनका कहना है की इन्होने १६३२ में ही ताज-ए-महल का वर्णन किया है जब की इतिहास के अनुसार उस वक्त तो ताजमहल के निर्माण का कार्य आरम्भ ही हुआ था|


एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं।


प्रो. ओक. ने अपनी इस कहानी में भी नाम तो असली ही लिया है जिस कारन किसी भी पाठक के लिए पिटर मुंडी के बारे में जानना कोई कठिन काम नही, परन्तु हाँ इनका वर्णन बहुत ही कम मिलता है| क्योंकि पिटर मुंडी कोई बहुत बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति नही थे और न ही कोई लेखक जो की वे अपने लेखों में ताजमहल का वर्णन करते|


पिटर मुंडी १६२८ से १६३२ तक भारत में रहे और उसी वक्त वे आगरा भी आये थे और उन्होंने अपनी डायरी में वहां की सुंदरता के बारे में लिखा जो कुछ – कुछ ताजमहल के आस-पास के वातावरण की सुंदरता से मेल खाते हैं परन्तु इन्होने भी ताजमहल के बारे में कुछ नही लिखा है|


आप इसके लिए यहाँ जा सकते हैं,
http://www.phoenixbonsai.com/pre1800Refs/Mundy.html



इसी तरह से इन्होने कई ऐसे व्यक्तिओं के नाम लिए है जिनका आसानी से नाम मिलता ही नही और जहाँ कहीं कुछ के नाम दिख भी जाएँ तो उनका कथन प्रो. ओक. के कथन से मेल नहीं खाते|


हाँ कुछ प्रमाण इस बात के जरुर मिलते हैं जिससे ये पता चलता है की वहां पहले कोई और इमारत थी परन्तु इस बात से क्या फर्क पड़ता है, यहाँ पे प्रो. ओक. ने शिव मंदिर को फिर क्यूँ जोड़ा आज जहाँ कहीं भी देखो तो न जाने इस तरह के कितने रिश्ते दिखाने में लगे हैं सभी| परन्तु यदि हम सब इन सबों को छोड़ के इंसानियत की बात करें तो फिर आप पाएंगे इन सब में कुछ भी नही रखा है, इसलिए इस तरह के धर्म प्रचारक के लिए अपना समय व्यथ न करें और अपनी तथा अपने आस – पास के सोंच का दायरा बढ़ाने में मदद करें| 

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