ताजमहल या तेजो महालय - 3




अब इस “ताजमहल या तेजो महालय” की कड़ी को आगे बढ़ाते हैं और इसकी शुरुआत आज मैं इस कड़ी के पहले पोस्ट ‘ताजमहल या तेजो महालय’ से करना चाहूँगा| वैसे इस पोस्ट को पढ़ और देख कर तो आप सभी के समझ में यह बात तो आ ही गयी होगी की इस पोस्ट को पब्लिश करने में मुझे कोई खास मेहनत नही करनी पड़ी होगी क्यूंकि उस पोस्ट की सामग्री आपको हू ब हू दूसरे बहुत से वेब-साईट पे मिल जाएँगी|


परन्तु यहाँ पे एक खास बात यह है, की, प्रो.पी. एन. ओक. के इस सामग्री को मैंने किसी वेब-साईट से नही लिया, यह मुझे ई-मेल से प्राप्त हुआ| अब आप सभी सोच रहे होंगे उससे क्या फर्क पड़ता है वेब-साईट पे पढ़ो या ई-मेल से बात तो एक ही है, तो हाँ बात तो एक है ही परन्तु हमें साईट पे ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है की इसे दूसरे को भी रेफर करें परन्तु मेरे पास आये मेल में यह साफ-साफ लिखा है की इसे जितना ज्यादा हो सके दूसरों को भी भेजें और जहां से ये मेल आया वहां का भी स्टेटस यह बतलाता है की इसे ग्रुप मेल किया गया है, इस मेल को मिलने के बाद जब मैंने दोस्तों से पूछताछ की तो पता चला की उन्हें भी ऐसा मेल मिला है और उसके बाद मैंने इंटरनेट पे जब इस बारे में खोज – बिन की यह सोंच कर की यह है क्या तो वहां भी मुझे बहुत से “याहू” (yahoo) और “गूगल” (google) के ग्रुप आईडी के बारे में जानकारी मिली जिससे यह पता चलता है की अभी लगातार यह मेल बहुत से लोगों को भेजा जा रहा है, अब इसकी शुरुआत कब हुयी इसकी तो सही जानकारी नही है परन्तु यह इस वर्ष २०१० में जोर-शोर से चल रहा है| इसके बारे में कुछ और जब खोजने का मन चाह तो मुझे यह लिंक मिली,
इस साईट पे इस सामग्री के बारे में २००८ में लिखी गयी थी और उसके बाद मामला तक़रीबन शांत था परन्तु उसके बाद फिर से यही सामग्री छपने लगी हैं इस २०१० वर्ष के प्रारंभ से ही| इससे सम्बंधित भी कुछ लिंक यहाँ पे हैं,  
बिच में इस बारे में इन्टरनेट पे बहुत कम जानकरिया मिलती है परन्तु आज यह सब अचानक क्यों? क्या चाहते हैं वे लोग जो ऐसा कर रहे हैं? यदि वे अपने को ज्ञानी कहते है तो उन्हें इसका ज्ञान भी तो होना ही चाहिए की जी इतिहास की बात वे करते हैं उसी इतिहास में अगर हम डूब कर देखें तो हमें यह मालूम चल जायेगा की इस तरह के सवालों से हमने अक्सर नुकसान ही उठाया है इतिहास को तो बदला नही जा सकता तो फिर उसके बारे में इस तरह से सोंच कर उसके पीछे अपना वक्त दे कर हम अपने वर्तमान और भविष्य को क्यों बर्बाद करने को खड़े हो जाते हैं|


ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि बहुत से लोग इस मेल को पढ़ कर हिंदू – मुस्लिम की बात करते मिल गए| और एक बात बता दूँ यह मेल आपको ज्यादातर विद्याथियों के मेल-आईडी में मिलेंगे यह अभी बड़े – बड़े महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और अच्छे से अच्छे शिक्षण संस्थानों के विद्याथिओं के बिच घूम रहा है| मेरी पहली पोस्ट को पढ़ कर तो बहुत से लोगों ने रोष प्रकट किया परन्तु क्या इन संस्थानों में ऐसा हो रहा है, या फिर वहां के लोग इसका समर्थन कर रहे हैं, या उनको इन सब बातों से कोई फर्क नही पड़ता|


यह हमारे लिए या फिर आपके लिए कोई खास बात भले न हो परन्तु एक आम आदमी के आम मस्तिष्क के लिए यह बहुत ही जरुरी है की वह ऐसे पथ-भटकाऊ बातों पे क्या प्रतिक्रिया जाहिर करता|


मुझे इस बात का बेहद अफशोस है की इस बार उन्होंने उन विद्याथियों को अपना निशाना बनाने की कोशिश की जिन्हें इस वक्त सिर्फ अपने सपने पुरे करने की धुन होती है और ये चाहते हैं की इनकी निरर्थक महत्वाकांक्षा ही उनके सपने बन जाएँ|


इस बात की पुष्टि मेरी तब हो गयी जब मैंने देखा की इस तरह की पोस्ट लिखने बाले ज्यातर ब्लॉगर २२ से २८ वर्ष के हैं|


मेरी पहली पोस्ट के बाद जब मेरी सबसे अच्छी दोस्त ने मुझे बताया की इन बातों को हुए तो वर्षों बीत गए फिर आज अचानक ये क्यों लिखा है मैंने? तो मैं उसे यही कहना चाहूँगा की जब कुछ वर्ष पहले इस बात का जिक्र हुआ था तब भी इसके बारे में जो कुछ भी इतिहास के पन्नों से जानकारियां मिली थी उसे सब के समक्ष पेश किया ही गया था, परतु आज न जाने क्यों इसकी शुरुआत फिर से करने की कोशिश की जा रही है तो मेरे मन को लगा कुछ तो कहना ही चाहिए और इसलिए मैंने इस “ताजमहल या तेजो महालय” कड़ी की शुरुआत की| और इस कड़ी के आरम्भ होने के पीछे इक और भी बात है, और वह यह की जब मेरे पास वह मेल आया था तो मैं अपने उस दोस्त से जा कर मिला जिसने मुझे भेजा था, और इस ई-मेल के बारे में पूछा तो उसने बताया की उसे यह मेल उसके किसी दोस्त ने भेजा था और फिर उसने मुझे और इस तरह न जाने कितनों के पास वह मेल पहूँच चूका था| और उसी ने मुझे इसे अपने ब्लॉग पे लिखने को भी कहा तो मैंने उससे कहा “लिख तो मैं दूँगा परन्तु यह पूरी कहानी नही है इसमें बहुत सी ऐसी बातें हैं जो किसी भी आम आदमीं को गुमराह करने के लिए काफी हैं और वो मैं नही कर सकता”, तब उसने एक अच्छी बात कही और वो यह की “नहीं मैं तुम्हें सिर्फ ये लिखने को नही कह रहा, तुम वो लिखो जो इसकी वास्तविक सच्चाई है” और फिर मुझे भी ऐसा लगा की इसे लिखना चाहिए| और आज काफी विद्यार्थी ब्लॉग को पढते हैं तो उन्हें यदि उस तरह के ई-मेल से ज्यादा अच्छी मेरी पोस्ट लगेगी या उन्हें इसमें कोई भी सच्चाई दिखेगी तो मुझे तो कम-से-कम ऐसा लगेगा ही की मैंने एक अच्छा कार्य किया और अभी भी मुझे अच्छा लग रहा है की कुछ नही तो कोशिश तो कर ही रहा हूँ|


इस पोस्ट को मैंने सिर्फ इस लिए लिखा है क्योंकि कुछ लोगों का कहना है की मैंने इस धार्मिक विवाद बाली बातों को क्यूँ लिखना जरुरी समझा जबकि आज सब लोग शांति से रहना पसंद करते हैं, तो मैं इस बात को फिर से रखना चाहूँगा की इस कड़ी की शुरुआत मैंने अशांति फ़ैलाने के लिए नही बल्कि शांति कायम रखने की कोशिश करने के लिए की है, और इस प्रश्न के उत्तर में यह बतलाना जरुरी था की इस कड़ी की शुरुआत मुझे क्यूँ करनी पड़ी|


और रही धार्मिक विवाद की बात तो मैं पहेल ही कह चूका हूँ की मुझे या मेरे इस ब्लॉग पोस्ट को किसी भी धर्म और धार्मिकता से कोई सरोकार नही, यहाँ पे मैं सिर्फ सच्चाई लिखने की कोशिश कर रहा हूँ|


ई-मेल की संरचना को देखने के लिए आप यहाँ जा सकते हैं :-

क्रमशः

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