ईश्वर इक अवधारणा मात्र

अब गुलजार सिंह के बेटे अभय के गुजरे हुए ५ वर्ष होने को आये, और आज भी इनकी आखों में वही नमी है| ये बहुत चाह के भी अपने बेटे को भुला नही पा रहे और कोई भुलाये भी कैसे , उसकी उम्र ही क्या थी १९-२० वर्ष का ही तो था वो|
परन्तु आज इन्हें अपनी गलती का ऐहसास है और अब तो ये अपने बेटे के मृत्यु का जिम्मेदार खुद को ही मानने लगे हैं|
आज से 5 वर्ष पहले जब अभय १०+२ में अपने स्कुल में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था तो उसके पिता ने अभय को इंजिनियर बनाने को सोचा और उसे आई. आई. टी. की तैयारी के लिए दिल्ली भेजा| वह इक बार छुटीयों में घर आया हुआ था तभी एक साधू इनके घर पे आकर बखान करने लगा| जैसा की हमारे भारतवर्ष का ७५% परिवार अन्धविश्वास में जी रहा है, इनके घर का भी वही हाल था, और अपने बारे में अच्छी - अच्छी बातें सुनना किसे अच्छा नही लगता, फिर कहीं ये किसी भगवान का कोई रूप तो नही, वस क्या था उसे घर में सम्मान के साथ बिठाया गया, जलपान के लिए भी आग्रह किया गया कहीं इन सब से ये भगवान कुछ ऐसा वरदान न दे-दें या कोई रास्ता सुझा दें जिससे अपना भाग्य बदल जाये|
इसके बाद गुलजार सिंह ने अभय को भी उस साधू से मिलाया और उसके भविष्य के बारे में पूछा, परन्तु ऐसा कभी हुआ है की इनलोगों ने कुछ बुरा बताया हो और कभी बताया भी तो उसके रोकथाम का उपाय न सुझाया हो, बस वे पूछते गये और ये भगवान बखान करते गये|
एक जमाना था जब ये बताते थे की हमें नौकरी मिलेगी या नही, शादी कब होगी ..वगैरह, परन्तु आज तो ये यह भी बताने लगे हैं की हम किस विषय में पढाई करेंगे, हमारे लिए MCA अच्छा है या MBA |
बस गुलजार सिंह जी ने भी अपने बेटे की इंजिनियर बनने की इच्छा जाहिर की और पूछा की इस तरफ हमारे बेटे का क्या भविष्य है| तो उस साधू ने बताया की "यह लड़का बहुत ही उज्जवल भविष्य का है और इसके रास्ते में किसी प्रकार की कोई बाधा नही है, यदि यह अपने रास्ते पे सच्चे मन से अग्रसर है तो इसे सफलता जरुर मिलेगी, परन्तु यदि इसे सफलता नही मिलती है तो इसका सिर्फ यही कारन हो सकता है की यह अपने पथ से विचलित हो गया है और इसे ईश्वर में सच्छी निष्ठा रखनी होगी|"
बस फिर क्या था अब तो अभय घर वालों के कहने पे रोज ढेर सारी पूजा याचना भी करने लगा| आस - पास कहीं भी पूजा , यज्ञं वगैरह होते तो उसे जाना ही पड़ता, उसके घर वालों की यही मर्जी थी, इस तरह से उसका बहुत वक्त ईश्वर को मानाने में चला गया|
फिर वह वक्त भी आया जब इंजीनियरिंग प्रवेश परीछा का परिणाम आया, परन्तु उसमें अभय का नाम नही था| अब उसे रह - रह कर उस साधू की वह बातयाद आने लगी "यदि इसे सफलता नहीं मिलती है तो इसका सिर्फ यही कारन होगा की यह अपने पथ से विचलित हो गया है|" और उसे समझ में नही आ रहा था की वह अपने घर वालों को कैसे यकीन दिलाएगा की उसने कोई गलती नही की, वह समझ नही पा रहा था की सब उसके बारे में क्या सोच रहे होंगे| वह उनसे नजरें मिलाने की हिम्मत न कर सका और दुनिया छोड़ दी|
आज गुलजार सिंह के घर में इस तरह के साधू - महात्मा, ईश्वर - भगवान के लिए कोई जगह नही है, परन्तु यह सब जानने में उन्हें इतनी देर लग गयी की उन्होंने अपना बेटा ही खो दिया| ऐसा सिर्फ गुलजार सिंह का ही घर नही, बल्कि बहुत से घर हैं जिन्होंने इन साधू - संतों की बातों में आकर ईश्वर - भगवान जैसी कभी न दिखने वाली अवधारणाओं पे विश्वाश कर न जाने कितने बहुमूल्य रिश्तों की बलि दे दी| अफशोस इस बात का नही की ऐसा हुआ अफशोस तो इस बात का है की सब कुछ जानने के बाद भी हम यह सब करने को तैयार हैं, क्यूँ हम न दिखने वाली चीजों को चाह कर उसे भूल जाते हैं जो हमारे पास है, जो हमें सबसे प्रिय है|
अब वक्त है जब लोगों को सच्चाई का सामना करना चाहिए, हमें अपना कार्य खुद करना होता है कोई ईश्वर नही यह सिर्फ एक अवधारणा है, और यह सत्य है या नही इसका फैसला भी आपको स्वयं करना है|

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शुभकामना

हिंदी ब्लॉग जगत को मेरी तरफ से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें


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