संस्कृत और संस्कृति

बिहार संस्कृत शिछा बोर्ड ने राजधानी में दो दिवसीय रास्ट्रीय संस्कृत सम्मलेन शुरू किया और इसके सम्मलेन में मंत्री ने कहा " संस्कृत को भुलाया तो नही बचेगी संस्कृति|
मैं ये तो नही जानता की हमारे कितने मंत्रियों को अपनी ही मातृभाषा कही जाने वाली संस्कृत का कितना ज्ञान है, परन्तु हाँ ऐसे बहुत से राजनेताओं को देखा जिन्हें मातृभाषा तो दूर राष्ट्रभाषा हिंदी भी ठीक से बोलनी नही आती|
मुझे अपने देश के राजनेताओं की यह धारणा जानकार बेहद अफ़सोस होता है की "कोई सभ्यता और उसकी संस्कृति की एक भाषा की भी मोहताज हो सकती है|" 

एक व्यंग :-
किसी ने कहा था "यह मेरे भारत की भूमि है यहाँ मुझ सा एक मिटेगा तो सैकड़ों फिर आ जायेंगे"
और आ भी गये सैकड़ों क्या लाखों आये हैं पर ये क्या.............. ऐसे - ऐसे ......................



खैर ......... जय हिंद..........!

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सच

सच क्या है? ये तो सभी जानते हैं पर क्या ये जानने की कोशिश करते हैं, क्यूँ है?
वैसे क्यूँ करेंगे, सच्चाई जानने के बाद भी जो उससे रु ब रु नही होना चाहते उसे अपना नही सकते तो फिर सच की सच्चाई से क्या वास्ता रह जाता है हमारा|

क्या कभी अजीब महसूस नही होता घुटन की तरह जब कभी हम भी वोही सब करते हैं जिसे दूसरों को करने से रोकते हैं, क्या उस वक़्त हमे कुछ भी याद नही होता या सब कुछ जान कर ऐसा करते हैं, उस वक़्त अपना फर्ज कहाँ रह जाता जब की दूसरों को तो हम उनके फर्ज खूब याद दिलाते रहते हैं और अपने ईमान और फर्ज की झूठी शान बनाते हैं|


हाँ हमें शायद गलतियाँ करते वक़्त कुछ भी याद नही रहता, लेकिन ये ध्यान होता है की कहीं हमें ये सब करते कोई देख न ले, मेरी बातें कहीं कोई सुन न ले, और अगर गलती से पकडे भी गये तो क्या फर्क पड़ता है .....

" भाई मनुष्य को गलतियों के बारे में थोड़े न ये पता होता है की यह गलती है "
" और मनुष्य कोई थोड़े न बुरा होता है बुरा तो उसका वक़्त होता है "
और जब ये सब तर्क बेकार हो जाते तो फिर :-

" क्या कर सकते हैं हम तो मनुष्य हैं न और गलतियाँ तो मनुष्यों से ही होती है "

फिर माफ़ी तो हम मनुष्यों के लिए ही है, और फिर इस बार माफ़ी नही मिलेगी तो फिर मैं वास्तव में अपने सजा हा हक़दार कैसे बन सकूंगा ...................
और माफ़ी देने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद, विस्वास रखो अगली बार मुझे गुनेहगार देखने के लिए आप नही रहोगे .....................

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एक संबाद - आखिर कब तक

रश्मि :- अरे लक्ष्मी क्या का रही है?
लक्ष्मी :- कुछ नही दीदी खाना बनाने की तयारी और का|
रश्मि :- का - का बनाएगी आज देखूं तो भला, अरे ये सब तो अभी काफी मंहगी होगी न कैसे दी?
लक्ष्मी :- जी दीदी, ३० रु. सेर, उनको बहुत पसंद थी न सो ले ली|
रश्मि :- चल ठीक है, अरे लक्ष्मी कल का हुआ था, शोर कैसा था बच्चे भी रो रहे थे|
लक्ष्मी :- कहाँ कुछ दीदी, कुछ भी तो नही|
रश्मि :- मैं सोची आने को पर उसी वक़्त वो खाने को बैठे थे और उस वक़्त मैं उनके साथ ही होती हूँ, वो भी चिंतित हुए पर जब तक हमलोग आते सब ख़त्म हो चूका था, सो सोचा आज चल कर पूछ लूँ,सब ठीक तो है न लक्ष्मी?
लक्ष्मी :- हाँ दीदी सब ठीक ही है|
काकी
:- नही, यहाँ कुछ भी ठीक नही है बेटी|
(लक्ष्मी के घर आते हुए एक बूढी औरत ने कहा)
लक्ष्मी :- अरे काकी, आओ बैठो|
मैं अभी आई|
काकी :- बेटी तू तो यहाँ नयी आई है न, तेरा नाम का है?
रश्मि :- काकी, हमार नाम रश्मि है|  
काकी :- रश्मि बेटी, यहाँ कुछ भी ठीक न है|
अब लक्ष्मी तोरा से का बोली, कल ओकर  घर वाला ओकर के पिट रहल, जेई से बच्चे भी रो रहिल|
रश्मि :- मार खा रही, काही से काकी?
अगर कोनो गलती होय जाई तो ओकर के शुधारे के चाही, मारे से कोनो राह सुझो है का?
काकी :- अरे बेटी, का गलती होई यहाँ तो छोट - छोट बात खातिर रोज कोनो - ने - कोनो घर इ होत रही|
रश्मि :- छोट - छोट बात माने एसे ही?
काकी :- हाँ तो और का, अभी दू दिन पहले उ घरवाली खूब पिटायल रही, हमें पुछली तो दाल में निमक ज्यादा भे गेल से ले|
रश्मि :- काकी, इहो कोनो कारण भेले, एसन बात रही तो अपने काहे ने बनाय ले|  
काकी :- हमू तो इहे कहली, लेकिन जखन ओकर घरावाला घरे रही और हमरे पे चिलाय लागल|
लक्ष्मी :- की काकी, आज - कल हमार याद नय आवे ल की, बहुत दिन बाद अइला|
रश्मि :- अरे लक्ष्मी इ का बात होई, तो सब उनकर मन - पसंद खाना बना - बना खिलाव और अपने खली मार खा - खा के संतोष कर:|
लक्ष्मी :- का बोली दीदी, उ तो जब उनकर मन न ठीक रही तब, नए तो उ तो हमरा से बहुते प्यार करी|
रश्मि :- लेकिन लक्ष्मी कब तक तू येसे रहब|
लक्ष्मी :- दीदी, अब तो वोही हमार जिन्दगी, हमार जीवन भर के साथी - उनकर सभिन इच्छा के सम्मान करना हमर फर्ज रही और इके हमरा अंतिम साँस तक निभाभे के होई|
शायद हमरे से कोनो गलती होय गईल रही कोनो पिछला जन्म में जे से ............|
रश्मि :- वाह रे आदर्श भारतीये नारी, उन रश्मो, सभ्यता - संस्कृति के लिए सबकुछ लुटा द जेकरा के बनाबे में एको नारी न रहिन और न बनाबे वाला सोचलिन की एकर से हमनी के की - की सहे पड़ी|
रश्मि :- आरो एसन भी की प्यार जेकर ख़ुशी पुरे मोहले में सुनाई दे और पुरे बदन पे दिखे|
लक्ष्मी :- जाय द दीदी, अब तो आदत भे गइल ह|
काकी :- अब रात होबे लागल, हमें जा हियो बेटी|
रश्मि :- हमू चलो हियो काकी, लेकिन लक्ष्मी तोरा के कोनो सहायता के जरूरत होई न तो जरुर बोलिह:|
लक्ष्मी :- जी दीदी|

.........................रश्मि बस सोचती हुयी चली आती है (आखिर कब तक)......................


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देवी बनाकर लुटा

सबसे ज्यादा नारी पूजा हमारे देश में होती है या यह कहें सिर्फ यहीं होती है :-






और सबसे ज्यादा नारी अपमान भी शायद
कब थमेंगे ये अनमोल रत्न






भगवान में आस्था रखने वाले कहते हैं न सबसे बड़ा शक्तिमान है भगवान, और मनुष्य क्या जिसने सबको देवी बना कर लुटा ...........

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***** शुभकामनायें *****




आप सभी हिंदी ब्लॉग जगत वासियों को दीपावली पर्व की ढेर सारी शुभकामनायें

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विज्ञान का जन्म :- अंतिम भाग

"विज्ञान का जन्म" इस कड़ी में अब तक आपने पढ़ा की किस तरह से मनुष्य के मस्तिष्क का विकाश हो रहा था, किस तरह से उसने अपने रहने - सहने के तरीके को बदला| और जब विज्ञान जैसी किसी चीज के बारे में उन्होंने सोचा तो इसकी शुरुआत सबसे पहले ग्रीक और यूनान से हुयी और किस तरह से यूनानियों ने हरेक विचारों का तर्कसंगत वैज्ञानिक कारण की खोज करने की कोशिश की|


आज मैं उस व्यक्ति के बारे में लिखने जा रहा हूँ जिसे हमलोगों ने पहले वैज्ञानिक के रूप में स्वीकार किया हैं, उनका नाम है थेल्स|








इनका जन्म यूनानी शहर मिल्ट्स (624-547 ईसा पूर्व) में हुआ था जो मुख्य यूनान से ईजियन समुद्र के रास्ते में एक छोटा सा शहर था| इन्हें बेबीलोनिया के खगोल विज्ञान की जानकारी प्राप्त थी, और इन्हें ही 28 मई, 585 ई.पू. के सूर्य ग्रहण की प्रसिद्ध भविष्यवाणी करने के लिए अनुमति दी गई थी| हमलोगों ने थेल्स को ही पहला वैज्ञानिक माना क्यूंकि ऐतिहासिक वैज्ञानिकों के विवरण में पहला नाम थेल्स का ही है जिन्होंने पहली बार इस दुनिया को विज्ञानं की नजर से देखने की कोशिश की|


इन्होने सभी प्रश्नों के अलग - अलग और भिन्न - भिन्न उत्तर दिए जिनके जवाव इसके पहले भगवान शब्द से शुरू होते थे| इन्होने बताया की पृथ्वी की उत्पति जल से हुयी है| थेल्स के अनुसार पृथ्वी एक चपटे प्लेट की तरह समुद्र के पानी पे तैर रही थी, और जैसा की मैंने इसके पिछले भाग लिखा है की यूनानी वैज्ञानिकों ने अपने विचारों को प्रकृती के ही शब्दों में समझाने की कोशिश की, वैसे ही थेल्स ने भी अपने पृथ्वी की उत्पति के सम्बन्ध में विचार प्रकृती के ही शब्दों में देने की कोशिश की, उनका विश्वास था की अचानक से समुद्र में हुए उत्थल - पुत्थल के कारण पृथ्वी में कम्पन हो उठी और ये टुकडों में विभाजित हो गयी जिसके कारण हमारी पृथ्वी का आकर ऐसा हो गया जैसा आज हमलोग देख रहे हैं|


परन्तु बहुत से सवाल ऐसे थे जिसका थेल्स के पास कोई जवाव नही था, जैसे चुम्बक और लोहे के बिच आकर्षण क्यूँ होता है ? उस समय तो लोग इसे आत्माओं का प्रभाव समझते थे, परन्तु थेल्स इन सब के जवाव में शिर्फ़ इतना ही कह पाते थे की इन सब के पीछे भी कोई न कोई कारण जरुर है जिसे मैं पता करने की कोशिश करूँगा परन्तु आत्माओं के प्रभाव जैसा कुछ भी नही होता| 



कुछ समय पश्चात् थेल्स की यह धारणा की पृथ्वी पानी पे तैरता हुआ प्लेट था का खंडन उनके ही विधार्थी अनाक्सिमंदर (Anaximander ) के द्वारा 610-546 ई. पू. में हुआ और अनाक्सिमंदर ने एक गोलाकार ब्रह्मांड का विचार रखा, उन्होंने यह भी बताया की पृथ्वी पानी पे तैरता कोई प्लेट नही बल्कि ब्रह्मांड (अंतरिक्ष) में निलंबित है| अनाक्सिमंदर के पृथ्वी निर्माण के विवरण में यह भी निहित है की उनके अनुसार मनुष्य शुरुआत में मछली जैसे लगते थे| 


जब अंतरिक्ष विज्ञान की बात आई तो फिर से हमें ग्रीक निवाशियों के पास आना पड़ा, क्यूंकि अंतरिक्ष विज्ञान की सबसे पहले जानकारी ग्रीक के वैज्ञानिकों ने ही दी| 470-399 ई.पू. में सुकरात और इसके बाद उनके छात्र प्लेटो (427-347 ई. पू.) और भी बहुत से वैज्ञानिक आये जिन्होंने विज्ञान का विकाश किया| 


और इसके बाद विज्ञान का विकाश होता ही चला गया और देखते - ही - देखते हम आज यहाँ तक पहुँच गये| लेकिन आज विज्ञान के बारे में इतना सब कुछ जानने के बाबजूद भी अगर कोई यह पूछता है की विज्ञान का जन्म कब हुआ था तो इसका हमारे पास कोई जवाव नही होता| और हो भी कैसे सकता है क्यूँकी आज के बने चीजों के बारे में हमसे पूछा जाये तो हम उसके बारे में वो सब तो बता सकते हैं जो हमे बताया जाता है परन्तु उसका अविष्कार तो उसी वक़्त शुरू हो जाता है जब हम पहली बार उनके के बारे में सोचते हैं| 


आज कुछ लोग विज्ञान का आरम्भ उस समय से मानते हैं जब मनुष्य ने पहली बार आग जलाना सिखा था, भोजन पका कर किया था, तो कुछ लोग विज्ञान को थेल्स के समय से मानते हैं जब मनुष्य ने पहली बार किसी भी क्रिया - कलाप का तर्कसंगत विवरण देने में सफलता प्राप्त की| 


परन्तु इन सब में इक बात साफ है और वो यह की विज्ञान को हम चाहे जब से माने परन्तु विज्ञान कभी भी कुछ अलग नही रहा हमने विज्ञान में भी उन्हीं तत्वों को शामिल किया जो प्रकृति में पहले से विद्यमान थे, वैसे भी विज्ञान किसी भी वस्तु के वास्तविक और विषेस (गुण - दोष निहित) ज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है| और जब ये बात सच है तो यह भी सत्य ही है की किसी वस्तु के बारे में जानने के बाद उसकी अवस्था में कोई परिवर्तन नही हुआ वे पहले जैसी थीं हमारे विज्ञान के विकाश के बाद भी वैसी ही रहीं अर्थात ये सब (जिसे हम विज्ञान कहते हैं ) हमारे विज्ञान शब्द के शुरुआत से पहले से ही विद्यमान थी| 


तो क्या हम ऐसा नही कह सकते की विज्ञान और प्रकृति का जन्म एक साथ हुआ, ये दोनों ही हमारे जिन्दगी में एक साथ आये|

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ऑक्सिजन के बिना जीवन




क्या आप ऑक्सिजन के बिना जीवन की कल्पना कर सकते हैं, नहीं न ?

और ये बात सच भी है, यहाँ जीवन - यापन के लिए ऑक्सिजन सबसे पहली आवश्यक तत्व है| परन्तु आज हम बात करने जा रहे हैं उस समय की जब पृथ्वी पे ऑक्सिजन नहीं के बराबर थी| जी हाँ आज से करीब २० करोड़ वर्ष पहले जब हमारी पृथ्वी के चारों तरफ सिर्फ जहरीले गैसों का धुआं था, तो क्या उस समय पृथ्वी पे जीवन - यापन संभव था ? क्या हमारी इस पृथ्वी पे जिव - जंतु थे ?


ये जिस समय की बात कर रहा हूँ मैं वह इस पृथ्वी के इतिहास में आर्कियन युग के नाम से जाना जाता है, उस समय पृथ्वी के चारों तरफ मीथेन, अमोनिया और घातक गैसों का जहरीला धुआं था| और हम पृथ्वी की सतह पे आज जैसे जीवन की कल्पना नही कर सकते थे, लेकिन हाल ही में अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी की अगुआई में एक इंटरनैशनल टीम ने बताया है कि 20 करोड़ वर्ष पहले जब पृथ्वी पर ऑक्सिजन नहीं थी तब भी समुद्र में जीवन थी, जब धरती की हवा सांस लेने के योग्य नहीं थी उससे करोड़ों वर्ष पहले भी कई तरह के पौधे जैसे बैक्टीरिया इत्यादि थी|


और इस बात का प्रमाण साउथ अफ्रीका में समुन्द्र के तलहटी में पाए गए पत्थर के नमूनों से मिले हैं, ये पत्थर लगभग २ - ३ अरब साल पुराने हैं| इन पत्थरों पे नाइट्रोजन साइकल के केमिकल पाए गए हैं, और नाइट्रोजन जीवन के लिए बहुत ही अहम माना जाता है| असल में नाइट्रोजन साइकल के माध्यम से जैविक क्रियाओं के तहत नाइट्रोजन में होने वाले बदलाव को देखा जा सकता है, और इससे हम ये भी पता कर सकते हैं की कैसे कोई जीवित प्राणी नाइट्रोजन का इस्तेमाल अपनी जैविक क्रियाओं में कर जटिल कार्बनिक अणु बनाते हैं। इसे (नाइट्रोजन साइकल) हम दुसरे शब्दों में फिंगर प्रिंट्स ऑफ लाइफ या जीवन के निशान कह सकते हैं| 


और एक सच ये भी है की बिना फ्री ऑक्सिजन के नाइट्रोजन साइकल की कल्पना नहीं की जा सकती, तो फिर इस बात से ये भी जाहिर होता है की पानी में कुछ ऐसे जिव या पौधे भी मौजूद रहे होंगे जो प्रकाशसंश्लेषण या फोटोसिंथेसिस की क्रिया कर बाद में  बाई प्रॉडक्ट के रूप में ऑक्सिजन उत्पादित करते हों| 


वैसे इन विचारों का अभी पूरा - पूरा तर्कसंगत परिमाण नहीं दिया गया है, परन्तु ये बात तो गौरतलब है ही की करीब २० करोड़ साल पहले पृथ्वी पे जीवन - यापन करने योग्य ऑक्सिजन की मात्रा नहीं थी, और ऐसे में २ - ३ अरब साल पुराने नाइट्रोजन साइकल के केमिकल का मिलना| 


उम्मीद है जल्द ही इन बातों की सही - सही जानकारियां हम सब तक पहुँच जाएँगी|

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अंतरिक्ष में पहली महिला




जी हाँ इस बार और पहली बार चीन ने अंतरिक्ष में जाने के लिए महिलाओं का चयन किया है, यह दूसरा अवसर है जब चीन ने अंतरिक्ष जाने का फैसला किया है और वहां की महिलाओं के लिए पहला जब उनका भी चयन अंतरिक्ष जाने के लिए हुआ है| आरंक्षिक चरण में इन्होने ३० पुरुष और १५ महिला कुल ४५ लोगों का चयन किया है ये सभी लोग वायुसेना के पायलेट हैं|

कुछ ही दिनों बाद इन चयनित उम्मीदवारों को दुसरे चरण में आगे के परीक्षण के लिए भेजा जाएगा, और बताया गया है इस चरण में फिजियोलॉजीकल एवं साइकोलॉजिकल परीक्षण किया जाएगा, और इसके बाद अंतिम चयन में ५ पुरुष और २ महिला चुनी जाएँगी जिन्हें अंतरिक्ष भेजा जायेगा|

और अब कुछ ही दिनों में वो रिपोर्ट भी आ जायेगी की किन २ महिलाओं को अंतरिक्ष जाने के लिए चुना गया है| अब जब महिलाओं को पहली बार चीन भेज रहा है तो इन महिलाओं पे अब और भी ज्यादा उतरदायित्व आजायेगा क्यूंकि ऐसा चीन पहली बार कर रहा है तो इन महिलाओं को भी तो चाहिए ही होगा की वो इस अवसर का सही - सही उपयोग कर सकें और बाकि महिलाओं के लिए भी इसके दरवाजे खोल दें और ये बताएं की आज की महिलाओं को बस एक और एक अवसर चाहिए और कुछ नही|

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विज्ञान का जन्म :- भाग 2




आज प्रस्तुत है "विज्ञान का जन्म" कड़ी का दूसरा भाग, पिछले भाग में हमने मानव के मस्तिष्क में उत्पनहोने वाले विचारों पे विचार किया था, ये जानने की कोशिश की थी की विज्ञान का जन्म कहाँ से हुआ और आजफिर हम अपनी इस कड़ी को आगे बढाते हैं|

जब कहीं भी
विज्ञान के जन्म की बात होती है तो उसमें सबसे पहला नाम जो आता है वो है, प्राचीन ग्रीस| प्राचीन ग्रीस को ही विज्ञान का जन्म स्थान कहा जाता है| यहाँ 600 ई.पू. ब्रह्मांड को समझने के लिए एक नयादृष्टिकोण उभरा, इसके पहले लोग संस्कृति और अन्धविश्वाश में रहते थे उनके लिए सब कुछ प्रकृति और देवी देवता ही थे| यही वह समय था जब पहली बार इन धारणाओं को मिथ्या बताया गया और इसकी शुरुआतहुयी यूनान से|

वह पहला समाज युनानिओं का ही था जो इस विचार धारा के मिथक के नाम से जाने जाते हैं| उन्होंने इन सभीविचारों के शारीरिक स्पष्टीकरण (Physical explanations) मांगने शुरू कर दिये और जब यहाँ उन्हें कोईस्पष्टीकरण न मिल सका तो वो खुद ही इसकी खोज में निकल लिए| वे ही इस दुनिया में सबसे पहले थे जोदेवताओं के कार्यों के सन्दर्भ में सामग्री नहीं बल्कि संस्कृतियों के विपरीत ब्रह्मांड को समझने में लगे थे|

ग्रीक लोग हमेशा प्रकृति के क्रिया कलापों के बारे में ही सोचते थे और सब कुछ प्रकृति की ही देन और धरोहर समझते थे, वे सभी चीजों को हमेशा भगवान और प्रकृति जैसे शब्दों से ही जोड़ कर उनका परिणाम उसी पेछोड़ देते थे| इसके विपरीत पहली बार यूनान के कुछ शुरूआती वैज्ञानिकों ( शुरूआती इसलिए क्यूंकि कहाजाता है
विज्ञान की शुरुआत यहीं से हुयी ) ने एक धारणा बनाई और बताया की यह दुनिया एक अंतर्निहिततर्कसंगत एकता (Underlying rational unity) और विभिन् प्रकार के मौजूद व्यवस्था प्रवाह (Order existed within the flux) का मिश्रण है| उन्होंने प्रकृति को प्रकृति के ही शब्दों में समझाया, उन्होंने कुछ केमूल प्रकृति से परे कर दिये, सामान्य रूप से व्यक्तिगत देवी देवताओं के माध्यम से अलग होकर इस दुनियाको देखने की कोशिश की|

वैसे यह भी सुनिश्चित है की
विज्ञान का जन्म वास्तविक रूप में यहाँ नही हुआ, यह अभी भी मातृहीन ही थालेकिन फिर भी यह दुनिया को देखने की एक नयी और अलग ही तरह की धारणा थी|

और अगर हम दूसरी तरफ देखें , तो जैसा की हम जानते हैं की किसी भी रहस्य के बारे जानने की कोशिशकरना और उसके बारे में जानना ही
विज्ञान है तो क्या वह विज्ञान थी जो हमारे पूर्वजों ने अपने रहस्यों कीजानकारी देवी - देवताओं के रूप में दी, हम ये तो कह सकते हैं की नहीं वह विज्ञान नही थी विज्ञान हमेशा इनधारणाओं के विपरीत ही रही है - तो क्या था वह जो पुरातन मानव ने अपने अनुसार रहस्यों को अनावरण कर, अपने चेतना और मन - मस्तिष्क का प्रयोग कर प्राप्त किया था ..............क्या था वो ?

अब आगे की चर्चा हम इस कड़ी के अगले भाग में करेंगे .....................

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विज्ञान का जन्म :- भाग 1


विज्ञान, ये शब्द हरेक जगह प्रयोग होता है चाहे हम इतिहास की बात करें, प्रकृति की करें चाहे वो भूगोल, मैथ कुछ भी हो| आज विज्ञान सर्वर्त्र है, परन्तु ये विज्ञान आखिर वास्तव में किस चिडिया का नाम है इसकी शुरुआत कहाँ से हुयी, क्यूँ हुयी और कैसे हुयी ? इस सवाल का जवाव दे कौन सकता है?

वैसे अगर यही सवाल आप किसी मंच पे, किसी सभा में या फिर किसी समूह में पूछेंगे तो आपको इस एक सवाल के कई जवाव मिलेंगे, तो क्या आप अपने इस सवाल के जवाव तक पहुंचे ?

कहते हैं होता तो सब के पास है पर अहमियत उसकी जो समय पे काम जाये, वैसे तो यहाँ सभी प्रश्नों के उत्तर विद्यमान हैं परन्तु उसके सत्य होने का प्रमाण जरुरी है और यहाँ अगर अपने दिमाग का उपयोग करें तो पाएंगे की इसका अभी कोई जवाव नही दिया जा सका है क्यूंकि जिस सवाल के जितने ज्यादे तरह के जवाव होते हैं उनकी प्रमाणिकता उतनी ही कम हो जाती है|

कहा जाता है विज्ञान का जन्म मानव विकास के साथ शुरू हुआ जैसे - जैसे मानव ने अपना विकास किया वैसे - वैसे ही इस विज्ञान का भी विकास होता चला गया|



जब हम मानव विकास की बात करें तो पाएंगे की मानव का विकास उसके मन और मस्तिष्क के विकास के साथ ही संभव है, जैसे - जैसे मानव ने अपने मन और मस्तिष्क पे काबू करना सिख लिया वैसे - वैसे ही मानव का विकास हुआ और विज्ञान का भी|

मानव विकास, और विशेष रूप से मानव मन और मस्तिष्क के विकास के बारे में हमारे वैज्ञानिकों को अभी तक ठीक - ठीक पता नही चल सका है की किस तरह से हमारे आदि मानव ने खुद पे काबू पाना सिखा, किस तरह से उन्होंने अपने मन और मस्तिष्क की सोचने - समझने की दिशा को बदला|

विज्ञान वास्तव में किसी भी विषय या वस्तु का विशेष ज्ञान है जो प्राप्त करने के बाद उसके गुण और दोष का सही - सही प्रयोग कर हम अपने जीवन शैली को आसन और वेहतर बनाने की कोशिश करते हैं|

तो, जब हम विज्ञान की नजर से भी देखें तो पाएंगे की जब मानव को अपनी सक्तियों का ज्ञान हुआ, जब उसने अपनी छमता को पहचाना तो जो कुछ भी उसके मन - मस्तिष्क में घटनाएँ घट रही थी वो भी विज्ञान की ही देन थी परन्तु शुरूआती मानव के साथ क्या हुआ उन्होंने किस तरह अपने विशेष ज्ञान (विज्ञानं) का उपयोग कर अपना विकास किया ये हमारे विज्ञान को अभी तक ठीक से समझ आने के कारण उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर प्रमाणिकता के साथ संभव नही हो पाए हैं|

लेकिन यह स्पष्ट है कि मानव ने चेतना, और संवेदना के कारण इस ब्रह्मांड का अर्थ जानना चाहा और इसी चाह में उसने एक विज्ञान जैसे कभी ख़त्म होने वाले विषय को जन्म दे डाला|
विज्ञान के बारे में जानने को अभी बहुत कुछ है इस " विज्ञान का जन्म " कड़ी में लेकिन इसके आगे का वृतांत इस कड़ी के अगले भाग में प्रस्तुत की जायेगी
..........................


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विज्ञान की महिमा .....


विज्ञान की महिमा का
जितना भी करो गुणगान
वो उतना ही है कम .......
विज्ञान के हैं भाई खेल निराले
इक से बढ़ कर इक
यह है, करामात दिखाए
आज इस जहाँ में
नहीं कुछ भी येसा है
जो अपने विज्ञान से अछूता है
विज्ञान की महिमा का
जितना भी करो गुणगान
वो उतना ही है कम .......
विज्ञान ही तो वो विषय है
जो प्रकृति के सभी
रहस्यों को अनावरण करता
और आशा को इक परिभाषा देता है
बड़े बड़े विद्वान भी
जहाँ कतराते और कुछ
भी, न कह पाते
उन सारे विषयों को है
कितनी आसानी से परिभाषित करता
है, अपना ये विज्ञान
विज्ञान की महिमा का
जितना भी करो गुणगान
वो उतना ही है कम .......

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क्या चाहती थीं वो ......



शायद इस दुनिया में तिन तरह के लोग होते हैं :-
एक वो, जो सोचता है - क्या चाहेगीं वो .....
दूसरा वो, जो जनता है - क्या चाहती हैं वो .....
और तीसरा, जो सोचता है - क्या चाहती थीं वो .....

इसमें पहला वाला तो आजाद ख्याल का होता है क्यूंकि वो अभी यही सोच रहा है की क्या चाहेगीं वो, मतलब उसका फैसला अभी हुआ नही है, इस बेचारे को उनसे अभी बाँधा नही गया है और इसकी जिन्दगी अभी भी इसके अपने हाथ में ही है|

दुसरे वाले के बारे में सोचें तो इसमें भी दो तरह के लोग मिलेंगे - एक तो वो जो सोचता है क्या चाहती है वो और दूसरा वो जो जानता है क्या चाहती हैं वो| इसमें तो पहले वाला हमेशा अपने किस्मत को ही कोसता दिख जाता है और उनके स्वभाव को त्रियाचरित्र से संबोधित करता है|

और दूसरा वो है जो उनकी पूजा करता मिलता है, क्यूंकि वो जनता है की क्या चाहती हैं वो, और येसे लोग अपने किस्मत का उपकार मानते हैं और उनसे अदव से पेश आते हैं|

और तीसरा इन्सान वो होता है जो ये सोचता है - क्या चाहती थीं वो, येसे लोग अपने जिंदगी से हताश - निराश ही मिलते हैं और अपना मूल्यांकन अंतिम साँस तक करते रह जाते हैं| इसमें कभी कभी उपरोक्त सभी तरह के लोग आ जाते हैं|

अगर पहले वाले को अपने सोंच के अनुशार न मिले और जो मिले उसे वो सोंच न पाये तो वो येसा सोंचने लगता है|

दुसरे वाले में, अगर वो नही सोंच पाये की क्या चाहती है वो उसकी सोंच भी कुछ दिनों बाद येसी ही हो जाती है क्या चाहती थी वो, और कभी - कभी किसी - किसी को लगे की क्या सोंचते थे हम तो फिर वो भी सोंचने लगता है क्या चाहती थी वो|

क्या चाहती थीं वो .....
वैसे इस तरह की हर सोच वोहीं होती है जहाँ प्यार होता है क्यूंकि अगर प्यार न हो कोई लगाव न हो तो कोई किसी के बारे में कहाँ सोचता है|

लेकिन क्या ये सब प्यार में सोचना जरुरी होता है?
नहीं न, तो फिर लोग एसा क्यूँ सोंचते हैं क्या प्यार ख़त्म हो जाता है, प्यार बढ़ जाता है, या प्यार का एहसास तभी होता है|
बहुत से लोग कहते हैं अब उसका प्यार ही मेरे लिए ख़त्म हो गया है

क्या ये सच है?
नहीं सच ये नही है, क्यूँ की सच हमेशा वो होता है जो लोग सोचना ही नही चाहते, जो मानना किसी को गवारा ही नही होता ये तो पता नही उन्हें क्या तकलीफ होती है परन्तु वे अपनी गलतियाँ नही मान पाते|
और जो लोग अपनी गलतियाँ मानना जानते हैं उनकी तकलीफ भी दूर हो जाती है|

वैसे भी गलतियाँ इंसानों से ही तो होती हैं, परन्तु सच्चा और अच्छा इन्सान वोही होता है जो समय रहते अपनी गलतियों को सुधारे ...........
यैसे लोगों को ये सोचने की जहमत कभी नही उठानी पड़ती की क्या चाहती थीं वो ...................................

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इन्टरनेट पे कमाई

इन्टरनेट पे कमाई करें घर बैठे ही, आज के इस तेज तरार दुनिया में क्या ये संभव है की घर बेठे ही आप रूपयेकमायें ये सब जानने के लिए देखें http://www.netjobs4all.com?id=462093|

कुछ लोगों का कहना है की उन्होंने यहाँ अपना टाइम दिया और उनकी कमाई भी हुयी अब यह कहाँ तक
सच है ये तो बस इसकाउपयोग करने वाला ही जनता होगा|

मुझे भी इसके बारे में जानने की इच्छा हुयी पर मुझे कुछ समझ नही आया की ये जो कुछ भी लिखते हैं वो कहाँ तक सच होती है|

तभी फिर मेरे दिमाग में ये ख्याल आया की यहाँ हमारे ब्लॉग जगत में तो बहुत से लोग हैं जो इसकी सही - सही जानकारी दे सकेंहमारे पाठकों को तो मैंने उपरोक्त लिंक यहाँ चिपका दिया|

और जिनको भी इसके बारे में सही सही समझ जाये और उनकी कमाई होने लगे तब तो ये फिर और भी अच्छी बात है यहाँ तोसभी को पैसे चाहिए, क्यूँ है ?

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अभिशाप मुक्त भारत

ये था हमारा अभिशापित भारत .....


और अब बना अभिशाप मुक्त हमारा भारत .....




अब बना हमारा भारत अभिशाप मुक्त

अब बना हमारा भारत अभिशाप मुक्त ||
प्यार और शांति जैसे विचारों से
घर - घर जन मानस के प्रेम से
एक दुसरे के प्रति शिष्टाचरों से
था कभी हमारा भारत अभिशापित
आज हम सभी इन विचारों से हुए मुक्त
अब बना हमारा भारत अभिशाप मुक्त ||

जब थे हमारे भारतवाशी अभिशापित
सब अपने कामों को छोड़, दूसरों के हित करते
अच्छे - बुरे बातों से मुक्त, प्रेम निछावर करते

एक दुसरे के दिल में, बसते और बसाते

क्या बतायें वे बेचारे, कितने झेले मुसीबतें

प्रेम, शांति और शिष्टाचार से दबे - दबे रहते

जब थे हमारे भारतवाशी अभिशापित
पर
आज हम सभी इन विचारों से हुए मुक्त
अब बना हमारा भारत अभिशाप मुक्त ||


आज उनकी बातों को याद कर
मन खिन सा जाता है

जो हमसे हमेशा अभिशापित विचारों को

दिल में बसाये जीने को कहते थे

आज वो भी अभिशाप मुक्त हो

समाज सुधारन कार्य करते हैं

इनके भी क्या नये - नये नजराने मिले मुझे

सारा समाज सुधारा, बस मुझी को अभिशापित छोड़ डाला ||


आज लोग मुझसे मुंह मोड़ लेते
क्यूंकि मैं उनसे निरछल प्रेम करता हूँ
लोग मिलने से कतराते मुझसे
क्यूंकि मैं शांति की बात करता हूँ
लोग मुझे अछूत मानते
क्यूंकि मैं राम और रहीम दोनों को दिल में रखता हूँ
आज तो मैं बस सोचता ही रह गया
उनके नये - नये नजराने
सारा समाज सुधारा बस मुझी को अभिशापित छोड़ डाला ||


पर, आज सब के कार्य रंग लाये
सब ने अब अपने आप को निखारा
एक - दुसरे के प्रति सभी अभिशापित विचार त्यागा
सभी ने एक दुसरे के प्रति विद्रोह छेड़ डाला
नये विचार नफरत और अशांति का आगमन कर
हमारे भारत को अभिशाप मुक्त कर डाला ||
आज हम सभी उन विचारों से हुए मुक्त
अब बना हमारा भारत अभिशाप मुक्त ||

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