ताजमहल या तेजो महालय - 4



मैंने ऐसा कभी नही कहा की मेरी पोस्ट पढ़ कर जिन्हें भी कोई संदेह हो, उनके संदेह को दूर करने की कोशिश नही की जायेगी या फिर उनके प्रश्नों के जवाब नही दिए जायेंगे| यदी हो सका तो अंत में इसकी टिप्पणी चर्चा भी की जायेगी|


जिस प्रकार हम किसी किताब को पढते हैं तो हमारे दिमाग में बहुत से संदेह उत्पन होते हैं, हम बहुत से सवालों के जवाब की मांग करने लगते हैं परन्तु संदेह की तर्कसंगत पुष्टि और हमारे सवालों के उचित जवाब हमें किताब को पूरी तरह से पढ लेने पे खुद ही मिल जाता है| और यदि आपको जवाब न भी मिलें तो कोई बात नही इस कड़ी की टिप्पणी चर्चा जब होगी उसमें आप सभी के संदेह को दूर करने की पूरी कोशिश की जायेगी| 


तो आईये आज फिर इस “ताजमहल या तेजो महालय” कड़ी को आगे बढ़ाते हैं| आज हम उन तथ्यों पे विचार करेंगे जो प्रो.पी. एन. ओक. ने ताजमहल को तेजो महालय बताते हुए अपने पछ में दिए हैं|


प्रो.पी. एन. ओक. ने अपने तथ्यों को बहुत से अलग – अलग भागों में दिए :-
कुछ तर्क ताजमहल नाम के सम्बन्ध में,
फिर उन्होंने इसे मंदिर बताते हुए कुछ तर्क दिए,
उन्होंने इसे भारतीय प्रामाणिक दस्तावेजो द्वारा भी मकबरा मानने से इंकार करते हुए कुछ तर्क दिए हैं,
विदेशी और यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख द्वारा भी इन्होने अपनी मान्यताओं की पुष्टि करने की कोशिश की है,
और भी ऐसे बहुत से तरीकों से अपनी मान्यताओं को स्पष्ट करने की कोशिश की है|


तो आइये इनके एक – एक तर्कों की चर्चा कर देखते हैं की वे वास्तव में इतिहास के लिए बहुमूल्य योगदान देने की कोशिश थी या फिर गुमराह करने की एक साजिस मात्र| 


इन्होने ताजमहल के नाम के सम्बन्ध में कुछ इस तरह के तर्क दिए :-
1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।

2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो।

3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है - पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता।

4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)।

5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है।

6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल। इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है।

7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है।

8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।



इनके इन तर्कों की बात करें तो ये तो आपको पूरी तरह से बेबुनियाद लगेंगे क्यों की इन तर्कों में ऐसा कुछ भी नही जिससे इस सत्य माना जा सके,

किसी भी वस्तु विशेष का उल्लेख उसके निर्माण के बाद ही होता है, और इसमें वक्त भी लगता है| फिर यहाँ तेजो महालय का भी कहीं उल्लेख इतिहास में कहीं नही मिलता है तो क्या ऐ हास्यप्रद नही है?


जब हम महल की बात करें तो आप इतिहास को अकबर के समय से देखें तो आपको पता चल जायेगा की उस समय हिंदू – मुस्लिम के बिच की दूरियां इस तरह की नही थी जैसा ओक साहब ने अपने किताबों में दिखाने की कोशिश की है, और फिर जैसा की हम किसी दूसरी जगह पे रहने लगते हैं तो वहां की भाषा भी सिखने लगते हैं और इतना ही नही उनका प्रयोग भी करते हैं, ऐसे में ओक. साहब की पुस्तक में उल्लेखित तर्क सिर्फ उनकी एक कट्टर हिंदुत्व व्यक्तित्व का ही परिचय देती है|


ओक. साहब की यह बात की मुमताज शब्द से “मुम” को छोड़ कर “ताज” का प्रयोग कैसे किसी को भी तर्क संगत लग सकती है जरा आप खुद ही सोचें यदि आप अपनी किसी वस्तु को कोई नाम देना चाहेंगे तो इसके लिए क्या आप आगे – पीछे देखेंगे या फिर जो भी आपको अच्छा लगेगा वही देंगे|


ओक. जी का यह कहना की शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते शब्द तेजो महालय को ताजमहल में बदल दिया यह सिर्फ एक मनगढंत और बचकाना बात है| इतिहास में इस बात का तो जिक्र है की ताजमहल का निर्माण कार्य १६३१ ई. में आरम्भ हुआ परन्तु उसके पहले या उसके बाद कहीं भी आगरा में किसी भी तेजो महालय नाम के मंदिर का कोई उल्लेख नही मिलता है|


वैसे यह बात तो आप सभी को ज्ञांत होगी ही की जब शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण में बहुत से देशों से कारीगर बुलाए थे, जिसमे मुख्यतः भारतीये, मुग़ल, और ईरानी थे, और सभी ने अपने अनुसार अपना बढ़िया से बढ़िया डिजाईन पेश किया और जो भी बादशाह को पसंद आये उसे ताजमहल में अंकित किया गया| इसलिए ताजमहल को भारतीये, मुस्लिम और ईरान के कला का संयुक्त मिश्रण भी कहा जाता है|


वैसे यदि ओक. की पूरी पुस्तक को पढ़ी जाये तो आप देखेंगे की वे खुद ही अपनी तर्कों में उलझ कर रह गए हैं, एक ही बात के लिए उन्होंने कभी उसके पक्ष में कहा है तो कभी उसके विरोध में| जैसे कभी इन्होने कहा की “ताजमहल” तेजो महालय शब्द का बिगड़ा रूप हैं तो कभी इन्होने कहा ये संस्कृत का मूल शब्द हैं|


ताजमहल के नाम के सम्बन्ध में दिए गए ओक. के सभी तर्क बस एक मनगढंत कहानी है और कुछ भी नही, और इसके लिए आप भारतीये इतिहास के पन्ने उलट सकते हैं आपको इस तरह की कोई भी जानकारी नही मिलेगी जैसा भी उन्होंने कहा है|


इसके आगे की चर्चा इस कड़ी के अगले पोस्ट में की जायेगी|

क्रमशः........

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