क्या चाहती थीं वो ......
शायद इस दुनिया में तिन तरह के लोग होते हैं :-
एक वो, जो सोचता है - क्या चाहेगीं वो .....
दूसरा वो, जो जनता है - क्या चाहती हैं वो .....
और तीसरा, जो सोचता है - क्या चाहती थीं वो .....
इसमें पहला वाला तो आजाद ख्याल का होता है क्यूंकि वो अभी यही सोच रहा है की क्या चाहेगीं वो, मतलब उसका फैसला अभी हुआ नही है, इस बेचारे को उनसे अभी बाँधा नही गया है और इसकी जिन्दगी अभी भी इसके अपने हाथ में ही है|
दुसरे वाले के बारे में सोचें तो इसमें भी दो तरह के लोग मिलेंगे - एक तो वो जो सोचता है क्या चाहती है वो और दूसरा वो जो जानता है क्या चाहती हैं वो| इसमें तो पहले वाला हमेशा अपने किस्मत को ही कोसता दिख जाता है और उनके स्वभाव को त्रियाचरित्र से संबोधित करता है|
और दूसरा वो है जो उनकी पूजा करता मिलता है, क्यूंकि वो जनता है की क्या चाहती हैं वो, और येसे लोग अपने किस्मत का उपकार मानते हैं और उनसे अदव से पेश आते हैं|
और तीसरा इन्सान वो होता है जो ये सोचता है - क्या चाहती थीं वो, येसे लोग अपने जिंदगी से हताश - निराश ही मिलते हैं और अपना मूल्यांकन अंतिम साँस तक करते रह जाते हैं| इसमें कभी कभी उपरोक्त सभी तरह के लोग आ जाते हैं|
अगर पहले वाले को अपने सोंच के अनुशार न मिले और जो मिले उसे वो सोंच न पाये तो वो येसा सोंचने लगता है|
दुसरे वाले में, अगर वो नही सोंच पाये की क्या चाहती है वो उसकी सोंच भी कुछ दिनों बाद येसी ही हो जाती है क्या चाहती थी वो, और कभी - कभी किसी - किसी को लगे की क्या सोंचते थे हम तो फिर वो भी सोंचने लगता है क्या चाहती थी वो|
क्या चाहती थीं वो .....
वैसे इस तरह की हर सोच वोहीं होती है जहाँ प्यार होता है क्यूंकि अगर प्यार न हो कोई लगाव न हो तो कोई किसी के बारे में कहाँ सोचता है|
लेकिन क्या ये सब प्यार में सोचना जरुरी होता है?
नहीं न, तो फिर लोग एसा क्यूँ सोंचते हैं क्या प्यार ख़त्म हो जाता है, प्यार बढ़ जाता है, या प्यार का एहसास तभी होता है|
बहुत से लोग कहते हैं अब उसका प्यार ही मेरे लिए ख़त्म हो गया है
क्या ये सच है?
नहीं सच ये नही है, क्यूँ की सच हमेशा वो होता है जो लोग सोचना ही नही चाहते, जो मानना किसी को गवारा ही नही होता ये तो पता नही उन्हें क्या तकलीफ होती है परन्तु वे अपनी गलतियाँ नही मान पाते|
और जो लोग अपनी गलतियाँ मानना जानते हैं उनकी तकलीफ भी दूर हो जाती है|
वैसे भी गलतियाँ इंसानों से ही तो होती हैं, परन्तु सच्चा और अच्छा इन्सान वोही होता है जो समय रहते अपनी गलतियों को सुधारे ...........
यैसे लोगों को ये सोचने की जहमत कभी नही उठानी पड़ती की क्या चाहती थीं वो ...................................
सच्चा और अच्छा इन्सान वोही होता है जो समय रहते अपनी गलतियों को सुधारे ...
-सत्य वचन!