अपना लोकतंत्र

ये हमारे लोकतंत्र के कर्णधार ....................... सरकार




ये , जो बनाते हैं सरकार.........(महलों में रहने वाले )



ये , जिनके लिए बनती है सरकार ................




ये हैं वो, जो कहते हैं हम तो भई दर्शक हैं, पर इसमें कहने की जरूरत दर्शक ही तो हैं भले कह देते हैं हमने बनाई सरकार .............


क्यूँ सच में न, सारे लोक तो समाये हैं हमारे लोकतंत्र में ........................

देखों न कितना तेज दोड़ रहा हमारा भारत इनके हाथों में ....................


क्यूँ हैं न?

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4 Response to "अपना लोकतंत्र"

  1. श्यामल सुमन, on April 29, 2009 at 8:00 AM said:

    बहुत खूब। बेहतरीन कोशिश। वाह।।

    नहीं मयस्सर रोटी उनको जो सबको रोटी देते।
    शासन चलता ठंढ़े घर से शासक की रातें सिन्दूरी।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

  2. Udan Tashtari, on April 29, 2009 at 2:33 PM said:

    सही है न!!

  3. L.Goswami, on April 29, 2009 at 9:54 PM said:

    एक चित्र हजारो शब्दों के बराबर होता है ..यहाँ को कई हैं ..यानि कई हजार शब्द.

  4. Pushpa Bajaj, on January 1, 2010 at 12:39 PM said:

    vah sachai is tarah paros kar rakhdi hai. jitni tarif ki jaye kam hai.