प्यार एक अभिशाप भी

जहाँ लोग प्यार को भगवान, कुदरत का वरदान मानते हैं क्या वहाँ ये कहना सही होगा की "प्यार इक अभिशाप भी है " लेकिन कभी - कभी एसा लगता है की गलत भी न होगा यह कहना |

हम एक हम-उम्र के प्यार के बारे में बात कर रहे हैं | प्यार को तो ऐसे भी अजीब नजरों से देखते हैं ऐसेऐसे न जाने कितने कसबे हैं हमारे देश में | कभी - कभी लगता है की जैसे कुदरत भी नही चाहती की प्यार जैसा कोई शब्द हो इस धरती पे, कभी - कभी वो एसी कयामत करती है की लोग प्यार का नाम भी नही ले पाते हैं |

ऐसी ही इक कहानी है हमारे बिहार राज्य के इक छोटे से गावं के एक युगल जोड़ी की (मैं गावं, और उनका नाम नही देना चाहता , हम मान लें की लड़के का नाम सूरज और लड़की आरती) है | ये दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे और शादी करना चाहते थे, परन्तु उनके घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नही थी |

आज भी हमारे देश में कई ऐसे गावं हैं जहाँ अगर एक लड़का और एक लड़की बात करते देख लिए जाएँ तो लोग ऐसा समझने लगते हैं जैसे किसी ने इनकी सभ्यता - संस्कृति को मुखाग्नि दे दी हो और फिर यहाँ सूरज और आरती तो जाती में भी एक नही थे , तो ऐसे में वहां के लोगों की नजर में इनकी गुनाहों की उंचाईयों का अंदाजा ही नही लगाया जा सकता |

और ऐसे में भी वो अपने घर वालों का आशीर्वाद लेकर ही अपना घर बसना चाहते थे, इसलिए इन्होने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किया अपने - अपने घर वालों को समझाने की, परन्तु इन सब के बदले अगर उन्हें अपने घर से कुछ मिली तो केवल शारीरिक और मानसिक कष्ट |


यह बात तो सच है की माता - पिता हमेसा अपने बच्चों की भलाई और खुशी चाहते हैं, परन्तु यहाँ स्थिति दूसरी लग रही , यहाँ तो उनके माता - पिता अपने परम्परा और समाज की खोखली इज्जत चाहते थे और वो भी अपने बच्चों की कीमत पे, परन्तु इसमें उनकी भी गलती नही हैं अगर वो अपने बच्चों की बातें मान भी लें तो उनका ये समाज उन्हें चैन से जीने नही देगा उन्हें जगह - जगह कठिनायियों का सामना करना पड़ जायेगा और फिर उनके घर में समाजिक विवाह कैसे होगी कौन करेगा उनके बाकि बच्चों से विवाह क्या जबाब देंगे वे अपने बच्चों को , मतलब की माता - पिता भी अपने बच्चों से इतना प्यार करते हुए उनकी ख़ुशी के लिए दिन - रात प्रार्थना करने वाले भी अपने बच्चों को उनकी खुशियाँ नही दे पाते |

ऐसी हालत में सूरज और आरती भी वही करते हैं जो अक्सर देखा और सुना जाता है | एक रात वो घर छोड़ भाग जाते हैं शुबह होते ही जब उनके घर वालों को पता चलता है , उन्हें ढूंढने लगते हैं पर उनका पता न पाकर अंत में दोनों के घर वाले पुलिश में रिपोर्ट कर घर लोट आते हैं | इसके बाद सूरज और आरती के साथ क्या हुआ ये तो नही पता परन्तु यहाँ उनके घर बाले बहुत दुखी थे धीरे धीरे उनके दुखों का वृछ इतना बढ़ता गया की आपने बच्चो के लिए दुआ मांगने वाले ही हाथ उनके लिए बदुआ मांगने लगी |

और जब माता - पिता के दुआ से बच्चों का संसार बनता है तो फिर उनकी बदुआ से बिगडेगा कैसे नही | एक दिन पुलिश को सूरज और आरती का पता चल गया और वो पकड़ लिए गये, वैसे तो वो दोनों ही बालिग थे पर ऐसे कुछ - कुछ जगहों पे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता न उनके समाज को नाही वहां की पुलिश को | जब वे पकडे गए तब तक उनका विवाह हो गया था और उनका एक बच्चा भी था , अब तो बस ये देखना था की वहां की पुलिश क्या करती है उनके साथ |

और एसे मामलों में यहाँ लडके को ही दोसी ठहराया जाता है , हमारी पुलिश ने फैसला किया की लडके को थाने ले चलते हैं और इस लड़की और इसके बच्चे को इसके माता - पिता को दे देते हैं | लेकिन आरती अपने घर नही जाना चाहती थी , और वो रोने लगी और पुलिश से सूरज के साथ खुद को भी जेल में बंद कर देने की गुहार करने लगी | अंत में पुलिश परेसान होकर आरती को भी जेल में बंद कर दिया और आरती के घर वालों का मजाक बनाने और उनकी बेइज्जती के इरादे से उनके बच्चे को आरती के घर भेजवा दिया | उनके समाज वालों ने न जाने क्या - क्या कहना सुरु कर दिया ऐसे में आरती के पिता की हालत और भी खराब हो गयी और ये सब आरती के छोटे भाई को सहन न हुआ और वो पुलिश स्टेशन जा अपनी बहन को बहला - फुसला के बहार ले आया और वहीँ पुलिश स्टेशन के चोखट पे ही आरती के सामने ही उसके बच्चे को उससे छीन के वहीँ पास के कुएं में फेक आरती के सिने में दोमुहे रायफल की दोनों गोलियां उतार दिया |

यह सब देख वहां की पुलिश ने आरती के भाई को प्रोत्साहन दिया और कहा " तुमने अपनी इस पापी बहन को मारकर और उसके वंश का विनाश कर अपने समाज को एक नयी प्रेरणा दी है |"

इतने के बाद आरती और उसके बच्चे के शव को छिपा कर उसके पति सूरज को शहर में लेजा कर छोड़ दिया गया, आज वह येसे ही इधर - उधर घूमता नजर आ जाता है, फटे - चिटे हाल में , सभी उसे पागल - पागल बुलाने लगे अब तो|

अब ऐसे में , ये प्यार किसके लिए वरदान था - सूरज और आरती के लिए जो एक दुसरे से वेइन्तहां प्यार करते थे , उनके बच्चे के लिए, उनके माता पिता के लिए या उस बदनशिब भाई के लिए, इतने सारे लोगों को इतना दुःख सिर्फ इसलिए की उनके समाज को ये रिश्ता मंजूर नही था इसलिए नही की उनके घर वालों को ये रिश्ता मंजूर नही था | क्यूंकि आज उनके घर वालों के पास अशीम खुशियाँ हैं सभी उन्हें समाज के प्रतिष्ठित लोगों में गिनते हैं पर क्या वेलोग सच में खुस हैं (अपने हाथों से अपने बच्चों का अपने भाई बहन का घर उजाड़ के कौन खुस रह सकता है चाहे उसे स्वर्ग ही क्यूँ न मिल जाये ) ये तो बस वे ही जानते हैं येसा नही है जानते तो हम सभी हैं पर इस बेगैरत समाज पे सब कुछ लुटाये जा रहे हैं अपनी सारी खुशियाँ |

लोग प्यार को भगवान का वरदान मानते हैं न तो फिर ये प्यार क्या था भगवान का वरदान या उनका अभिशाप ?


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