संस्कृत और संस्कृति

बिहार संस्कृत शिछा बोर्ड ने राजधानी में दो दिवसीय रास्ट्रीय संस्कृत सम्मलेन शुरू किया और इसके सम्मलेन में मंत्री ने कहा " संस्कृत को भुलाया तो नही बचेगी संस्कृति|
मैं ये तो नही जानता की हमारे कितने मंत्रियों को अपनी ही मातृभाषा कही जाने वाली संस्कृत का कितना ज्ञान है, परन्तु हाँ ऐसे बहुत से राजनेताओं को देखा जिन्हें मातृभाषा तो दूर राष्ट्रभाषा हिंदी भी ठीक से बोलनी नही आती|
मुझे अपने देश के राजनेताओं की यह धारणा जानकार बेहद अफ़सोस होता है की "कोई सभ्यता और उसकी संस्कृति की एक भाषा की भी मोहताज हो सकती है|" 

एक व्यंग :-
किसी ने कहा था "यह मेरे भारत की भूमि है यहाँ मुझ सा एक मिटेगा तो सैकड़ों फिर आ जायेंगे"
और आ भी गये सैकड़ों क्या लाखों आये हैं पर ये क्या.............. ऐसे - ऐसे ......................



खैर ......... जय हिंद..........!

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सच

सच क्या है? ये तो सभी जानते हैं पर क्या ये जानने की कोशिश करते हैं, क्यूँ है?
वैसे क्यूँ करेंगे, सच्चाई जानने के बाद भी जो उससे रु ब रु नही होना चाहते उसे अपना नही सकते तो फिर सच की सच्चाई से क्या वास्ता रह जाता है हमारा|

क्या कभी अजीब महसूस नही होता घुटन की तरह जब कभी हम भी वोही सब करते हैं जिसे दूसरों को करने से रोकते हैं, क्या उस वक़्त हमे कुछ भी याद नही होता या सब कुछ जान कर ऐसा करते हैं, उस वक़्त अपना फर्ज कहाँ रह जाता जब की दूसरों को तो हम उनके फर्ज खूब याद दिलाते रहते हैं और अपने ईमान और फर्ज की झूठी शान बनाते हैं|


हाँ हमें शायद गलतियाँ करते वक़्त कुछ भी याद नही रहता, लेकिन ये ध्यान होता है की कहीं हमें ये सब करते कोई देख न ले, मेरी बातें कहीं कोई सुन न ले, और अगर गलती से पकडे भी गये तो क्या फर्क पड़ता है .....

" भाई मनुष्य को गलतियों के बारे में थोड़े न ये पता होता है की यह गलती है "
" और मनुष्य कोई थोड़े न बुरा होता है बुरा तो उसका वक़्त होता है "
और जब ये सब तर्क बेकार हो जाते तो फिर :-

" क्या कर सकते हैं हम तो मनुष्य हैं न और गलतियाँ तो मनुष्यों से ही होती है "

फिर माफ़ी तो हम मनुष्यों के लिए ही है, और फिर इस बार माफ़ी नही मिलेगी तो फिर मैं वास्तव में अपने सजा हा हक़दार कैसे बन सकूंगा ...................
और माफ़ी देने के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद, विस्वास रखो अगली बार मुझे गुनेहगार देखने के लिए आप नही रहोगे .....................

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