एक संबाद - आखिर कब तक

रश्मि :- अरे लक्ष्मी क्या का रही है?
लक्ष्मी :- कुछ नही दीदी खाना बनाने की तयारी और का|
रश्मि :- का - का बनाएगी आज देखूं तो भला, अरे ये सब तो अभी काफी मंहगी होगी न कैसे दी?
लक्ष्मी :- जी दीदी, ३० रु. सेर, उनको बहुत पसंद थी न सो ले ली|
रश्मि :- चल ठीक है, अरे लक्ष्मी कल का हुआ था, शोर कैसा था बच्चे भी रो रहे थे|
लक्ष्मी :- कहाँ कुछ दीदी, कुछ भी तो नही|
रश्मि :- मैं सोची आने को पर उसी वक़्त वो खाने को बैठे थे और उस वक़्त मैं उनके साथ ही होती हूँ, वो भी चिंतित हुए पर जब तक हमलोग आते सब ख़त्म हो चूका था, सो सोचा आज चल कर पूछ लूँ,सब ठीक तो है न लक्ष्मी?
लक्ष्मी :- हाँ दीदी सब ठीक ही है|
काकी
:- नही, यहाँ कुछ भी ठीक नही है बेटी|
(लक्ष्मी के घर आते हुए एक बूढी औरत ने कहा)
लक्ष्मी :- अरे काकी, आओ बैठो|
मैं अभी आई|
काकी :- बेटी तू तो यहाँ नयी आई है न, तेरा नाम का है?
रश्मि :- काकी, हमार नाम रश्मि है|  
काकी :- रश्मि बेटी, यहाँ कुछ भी ठीक न है|
अब लक्ष्मी तोरा से का बोली, कल ओकर  घर वाला ओकर के पिट रहल, जेई से बच्चे भी रो रहिल|
रश्मि :- मार खा रही, काही से काकी?
अगर कोनो गलती होय जाई तो ओकर के शुधारे के चाही, मारे से कोनो राह सुझो है का?
काकी :- अरे बेटी, का गलती होई यहाँ तो छोट - छोट बात खातिर रोज कोनो - ने - कोनो घर इ होत रही|
रश्मि :- छोट - छोट बात माने एसे ही?
काकी :- हाँ तो और का, अभी दू दिन पहले उ घरवाली खूब पिटायल रही, हमें पुछली तो दाल में निमक ज्यादा भे गेल से ले|
रश्मि :- काकी, इहो कोनो कारण भेले, एसन बात रही तो अपने काहे ने बनाय ले|  
काकी :- हमू तो इहे कहली, लेकिन जखन ओकर घरावाला घरे रही और हमरे पे चिलाय लागल|
लक्ष्मी :- की काकी, आज - कल हमार याद नय आवे ल की, बहुत दिन बाद अइला|
रश्मि :- अरे लक्ष्मी इ का बात होई, तो सब उनकर मन - पसंद खाना बना - बना खिलाव और अपने खली मार खा - खा के संतोष कर:|
लक्ष्मी :- का बोली दीदी, उ तो जब उनकर मन न ठीक रही तब, नए तो उ तो हमरा से बहुते प्यार करी|
रश्मि :- लेकिन लक्ष्मी कब तक तू येसे रहब|
लक्ष्मी :- दीदी, अब तो वोही हमार जिन्दगी, हमार जीवन भर के साथी - उनकर सभिन इच्छा के सम्मान करना हमर फर्ज रही और इके हमरा अंतिम साँस तक निभाभे के होई|
शायद हमरे से कोनो गलती होय गईल रही कोनो पिछला जन्म में जे से ............|
रश्मि :- वाह रे आदर्श भारतीये नारी, उन रश्मो, सभ्यता - संस्कृति के लिए सबकुछ लुटा द जेकरा के बनाबे में एको नारी न रहिन और न बनाबे वाला सोचलिन की एकर से हमनी के की - की सहे पड़ी|
रश्मि :- आरो एसन भी की प्यार जेकर ख़ुशी पुरे मोहले में सुनाई दे और पुरे बदन पे दिखे|
लक्ष्मी :- जाय द दीदी, अब तो आदत भे गइल ह|
काकी :- अब रात होबे लागल, हमें जा हियो बेटी|
रश्मि :- हमू चलो हियो काकी, लेकिन लक्ष्मी तोरा के कोनो सहायता के जरूरत होई न तो जरुर बोलिह:|
लक्ष्मी :- जी दीदी|

.........................रश्मि बस सोचती हुयी चली आती है (आखिर कब तक)......................


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देवी बनाकर लुटा

सबसे ज्यादा नारी पूजा हमारे देश में होती है या यह कहें सिर्फ यहीं होती है :-






और सबसे ज्यादा नारी अपमान भी शायद
कब थमेंगे ये अनमोल रत्न






भगवान में आस्था रखने वाले कहते हैं न सबसे बड़ा शक्तिमान है भगवान, और मनुष्य क्या जिसने सबको देवी बना कर लुटा ...........

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***** शुभकामनायें *****




आप सभी हिंदी ब्लॉग जगत वासियों को दीपावली पर्व की ढेर सारी शुभकामनायें

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विज्ञान का जन्म :- अंतिम भाग

"विज्ञान का जन्म" इस कड़ी में अब तक आपने पढ़ा की किस तरह से मनुष्य के मस्तिष्क का विकाश हो रहा था, किस तरह से उसने अपने रहने - सहने के तरीके को बदला| और जब विज्ञान जैसी किसी चीज के बारे में उन्होंने सोचा तो इसकी शुरुआत सबसे पहले ग्रीक और यूनान से हुयी और किस तरह से यूनानियों ने हरेक विचारों का तर्कसंगत वैज्ञानिक कारण की खोज करने की कोशिश की|


आज मैं उस व्यक्ति के बारे में लिखने जा रहा हूँ जिसे हमलोगों ने पहले वैज्ञानिक के रूप में स्वीकार किया हैं, उनका नाम है थेल्स|








इनका जन्म यूनानी शहर मिल्ट्स (624-547 ईसा पूर्व) में हुआ था जो मुख्य यूनान से ईजियन समुद्र के रास्ते में एक छोटा सा शहर था| इन्हें बेबीलोनिया के खगोल विज्ञान की जानकारी प्राप्त थी, और इन्हें ही 28 मई, 585 ई.पू. के सूर्य ग्रहण की प्रसिद्ध भविष्यवाणी करने के लिए अनुमति दी गई थी| हमलोगों ने थेल्स को ही पहला वैज्ञानिक माना क्यूंकि ऐतिहासिक वैज्ञानिकों के विवरण में पहला नाम थेल्स का ही है जिन्होंने पहली बार इस दुनिया को विज्ञानं की नजर से देखने की कोशिश की|


इन्होने सभी प्रश्नों के अलग - अलग और भिन्न - भिन्न उत्तर दिए जिनके जवाव इसके पहले भगवान शब्द से शुरू होते थे| इन्होने बताया की पृथ्वी की उत्पति जल से हुयी है| थेल्स के अनुसार पृथ्वी एक चपटे प्लेट की तरह समुद्र के पानी पे तैर रही थी, और जैसा की मैंने इसके पिछले भाग लिखा है की यूनानी वैज्ञानिकों ने अपने विचारों को प्रकृती के ही शब्दों में समझाने की कोशिश की, वैसे ही थेल्स ने भी अपने पृथ्वी की उत्पति के सम्बन्ध में विचार प्रकृती के ही शब्दों में देने की कोशिश की, उनका विश्वास था की अचानक से समुद्र में हुए उत्थल - पुत्थल के कारण पृथ्वी में कम्पन हो उठी और ये टुकडों में विभाजित हो गयी जिसके कारण हमारी पृथ्वी का आकर ऐसा हो गया जैसा आज हमलोग देख रहे हैं|


परन्तु बहुत से सवाल ऐसे थे जिसका थेल्स के पास कोई जवाव नही था, जैसे चुम्बक और लोहे के बिच आकर्षण क्यूँ होता है ? उस समय तो लोग इसे आत्माओं का प्रभाव समझते थे, परन्तु थेल्स इन सब के जवाव में शिर्फ़ इतना ही कह पाते थे की इन सब के पीछे भी कोई न कोई कारण जरुर है जिसे मैं पता करने की कोशिश करूँगा परन्तु आत्माओं के प्रभाव जैसा कुछ भी नही होता| 



कुछ समय पश्चात् थेल्स की यह धारणा की पृथ्वी पानी पे तैरता हुआ प्लेट था का खंडन उनके ही विधार्थी अनाक्सिमंदर (Anaximander ) के द्वारा 610-546 ई. पू. में हुआ और अनाक्सिमंदर ने एक गोलाकार ब्रह्मांड का विचार रखा, उन्होंने यह भी बताया की पृथ्वी पानी पे तैरता कोई प्लेट नही बल्कि ब्रह्मांड (अंतरिक्ष) में निलंबित है| अनाक्सिमंदर के पृथ्वी निर्माण के विवरण में यह भी निहित है की उनके अनुसार मनुष्य शुरुआत में मछली जैसे लगते थे| 


जब अंतरिक्ष विज्ञान की बात आई तो फिर से हमें ग्रीक निवाशियों के पास आना पड़ा, क्यूंकि अंतरिक्ष विज्ञान की सबसे पहले जानकारी ग्रीक के वैज्ञानिकों ने ही दी| 470-399 ई.पू. में सुकरात और इसके बाद उनके छात्र प्लेटो (427-347 ई. पू.) और भी बहुत से वैज्ञानिक आये जिन्होंने विज्ञान का विकाश किया| 


और इसके बाद विज्ञान का विकाश होता ही चला गया और देखते - ही - देखते हम आज यहाँ तक पहुँच गये| लेकिन आज विज्ञान के बारे में इतना सब कुछ जानने के बाबजूद भी अगर कोई यह पूछता है की विज्ञान का जन्म कब हुआ था तो इसका हमारे पास कोई जवाव नही होता| और हो भी कैसे सकता है क्यूँकी आज के बने चीजों के बारे में हमसे पूछा जाये तो हम उसके बारे में वो सब तो बता सकते हैं जो हमे बताया जाता है परन्तु उसका अविष्कार तो उसी वक़्त शुरू हो जाता है जब हम पहली बार उनके के बारे में सोचते हैं| 


आज कुछ लोग विज्ञान का आरम्भ उस समय से मानते हैं जब मनुष्य ने पहली बार आग जलाना सिखा था, भोजन पका कर किया था, तो कुछ लोग विज्ञान को थेल्स के समय से मानते हैं जब मनुष्य ने पहली बार किसी भी क्रिया - कलाप का तर्कसंगत विवरण देने में सफलता प्राप्त की| 


परन्तु इन सब में इक बात साफ है और वो यह की विज्ञान को हम चाहे जब से माने परन्तु विज्ञान कभी भी कुछ अलग नही रहा हमने विज्ञान में भी उन्हीं तत्वों को शामिल किया जो प्रकृति में पहले से विद्यमान थे, वैसे भी विज्ञान किसी भी वस्तु के वास्तविक और विषेस (गुण - दोष निहित) ज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है| और जब ये बात सच है तो यह भी सत्य ही है की किसी वस्तु के बारे में जानने के बाद उसकी अवस्था में कोई परिवर्तन नही हुआ वे पहले जैसी थीं हमारे विज्ञान के विकाश के बाद भी वैसी ही रहीं अर्थात ये सब (जिसे हम विज्ञान कहते हैं ) हमारे विज्ञान शब्द के शुरुआत से पहले से ही विद्यमान थी| 


तो क्या हम ऐसा नही कह सकते की विज्ञान और प्रकृति का जन्म एक साथ हुआ, ये दोनों ही हमारे जिन्दगी में एक साथ आये|

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